11 - 08 - 88  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

सफलता का चुम्बक - ‘मिलना और मोल्ड होना'

अपने सेवाधारी, स्नेही बच्चों को स्नेह का रिटर्न देने बापदादा बच्चों की महफिल में पधारे तथा महावाक्य उच्चारण किये

 - ‘‘सबका स्नेह, स्नेह के सागर में समा गया। ऐसे ही सदा स्नेह में समाये हुए औरों को भी स्नेह का अनुभव कराते चलो। बापदादा सर्व बच्चों के विचार समान मिलने का सम्मेलन देख हर्षित हो रहे हैं। उड़ते आने वालों को सदा उड़ती कला के वरदान स्वत: प्राप्त होते रहेंगे। बापदादा सर्व आये हुए बच्चों के उमंग - उत्साह को देख सभी बच्चों पर स्नेह के फूलों की वर्षा कर रहे हैं। संकल्प समान मिलन और आगे संस्कार बाप समान मिलन - यह मिलन ही बाप का मिलन है। यही बाप समान बनना है। संकल्प - मिलन, संस्कार - मिलन - मिलना ही निर्मान बन निमित्त बनना है। समीप आ रहे हो, आ ही जायेंगे। सेवा की सफलता की निशानी देख हर्षित हो रहे हैं। स्नेह मिलन में आये हो, सदा स्नेही बन स्नेह की लहर विश्व में फैलाने के लिए। लेकिन हर बात में चैरिटी बिगन्स एट होम। पहले स्व है अपना सबसे प्यारा होम। तो पहले स्व से, फिर ब्राह्मण परिवार से, फिर विश्व से। हर संकल्प में स्नेह, नि:स्वार्थ सच्चा स्नेह, दिल का स्नेह, हर संकल्प में सहानुभूति, हर संकल्प में रहमदिल, दातापन की नैचरल नेचर बन जाए - यह है स्नेह मिलन, संकल्प मिलन, विचार मिलन, संस्कार मिलन। सर्व के सहयोग के कार्य के पहले सदा सर्व श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्माओं का सहयोग विश्व को सहयोगी सहज और स्वत: बना ही लेता है। इसलिए सफलता समीप आ रही है। मिलना और मुड़ना अर्थात् मोल्ड होना - यही सफलता का चुम्बक है। बहुत सहज इस चुम्बक के आगे सर्व आत्मायें आकर्षित हो आई कि आई!

मीटिंग के बच्चों को भी बापदादा स्नेह की मुबारक दे रहे हैं। समीप हैं और सदा समीप रहेंगे। न सिर्फ बाप के लेकिन आपस में भी समीपता का विजन (दृश्य) बापदादा को दिखाया। विश्व को विजन दिखाने के पहले बापदादा ने देखा। आने वाले आप सर्व बच्चों के एक्शन (कर्म) को देख - क्या एक्शन करना है, होना है, वह सहज ही समझ जायेंगे। आपका एक्शन ही एक्शन प्लैन है। अच्छा!

प्लैन सब अच्छे बनाये हैं। और भी जैसे यह कार्य आरम्भ होते बापदादा का विशेष इशारा वर्गीकरण को तैयार करने का था और अब भी है। तो ऐसा लक्ष्य जरूर रखो कि इस महान कार्य में कोई भी वर्ग रह नहीं जाये। चाहे समय प्रमाण ज्यादा नहीं कर सकते हो लेकिन प्रयत्न वा लक्ष्य यह जरूर रखो कि सैम्पल जरूर तैयार हों। बाकी आगे इसी कार्य को और बढ़ाते रहेंगे। तो समय प्रमाण करते रहना। लेकिन समाप्ति को समीप लाने के लिए सर्व का सहयोग चाहिए। लेकिन इतनी सारी दुनिया की आत्माओं को तो एक समय पर सम्पर्क में नहीं ला सकते। इसलिए आप फलक से कह सको कि हमने सर्व आत्माओं को सर्व वर्ग के आधार से सहयोगी बनाया है, तो यह लक्ष्य सर्व के कारण को पूरा कर देता है। कोई भी वर्ग का उल्हना नहीं रह जाए कि हमें तो पता ही नहीं है कि क्या कर रहे हो? बीज डालो। बाकी - वृद्धि जैसा समय मिले, जैसे कर सको वैसे करो। इसमें भारी नहीं होना कि कैसे करें, कितना करें? जितना होना है उतना हो ही जायेगा। जितना किया उतना ही सफलता के समीप आये। सैम्पल तो तैयार कर सकते हो ना?

बाकी जो इण्डियन गवर्मेन्ट (भारत सरकार) को समीप लाने का श्रेष्ठ संकल्प लाया है, वह समय सर्व की बुद्धियों को समीप ला रहा है। इसलिए सर्व ब्राह्मण आत्मायें इस विशेष कार्य के अर्थ आरम्भ से अन्त तक विशेष शुद्ध संकल्प ‘‘सफलता होनी ही है'' - इस शुद्ध संकल्प से और बाप समान वायब्रेशन बनाने मिलाने से, विजय के निश्चय की दृढ़ता से आगे बढ़ते चलो। लेकिन जब कोई बड़ा कार्य किया जाता है तो पहले, जैसे स्थूल में देखा है - कोई भी बोझ उठायेंगे तो क्या करते हैं? सभी मिलकर उंगली देते हैं और एक दो को हिम्मत - उल्लास बढ़ाने के बोल बोलते हैं। देखा है ना! ऐसे ही निमित्त कोई भी बनता है लेकिन सदा इस विशेष कार्य के लिए सर्व के स्नेह, सर्व के सहयोग, सर्व के शक्ति के उमंग - उत्साह के वायब्रेशन कुम्भकरण को नींद से जगायेंगे। यह अटेन्शन जरूरी है इस विशेष कार्य के ऊपर। विशेष स्व, सर्व ब्राह्मण और विश्व की आत्माओं का सहयोग लेना ही सफलता का साधन है। इसके बीच में थोड़ा भी अगर अन्तर पड़ता है तो सफलता के अन्तर लाने में निमित्त बन जाता है। इसलिए बापदादा सभी बच्चों के हिम्मत का आवाज सुन उसी समय हर्षित हो रहे थे और खास संगठन के स्नेह के कारण स्नेह का रिटर्न देने के लिए आये हैं। बहुत अच्छे हो और अच्छे - ते - अच्छे अनेक बार बने हो और बने हुए हो! इसलिए डबल विदेशी बच्चों के दूर से एवररेडी बन उड़ने के निमित्त बापदादा विशेष बच्चों को ह्दय का हार बनाए समाते हैं। अच्छा!

कुमारियाँ तो हैं ही कन्हैया की। बस एक शब्द याद रखना - सबमें एक, एकमत, एकरस, एक बाप। भारत के बच्चों को भी बापदादा दिल से मुबारक दे रहे हैं। जैसा लक्ष्य रखा वैसे लक्षण प्रैक्टिकल में लाया। समझा? किसको कहें, किसको न कहें - सबको कहते हैं! (दादी को) जो निमित्त बनते हैं, उनको ख्याल तो रहता ही है। यही सहानुभूति की निशानी है। अच्छा!

मीटिंग में आये हुए सभी भाई - बहनों को बापदादा ने स्टेज पर बुलाया

सभी ने बुद्धि अच्छी चलाई है। बापदादा हरेक बच्चे के सेवा के स्नेह को जानते हैं। सेवा में आगे बढ़ने से कहाँ तक चारों ओर की सफलता है, इसको सिर्फ थोड़ा - सा सोचना और देखना। बाकी सेवा की लगन अच्छी है। दिन - रात एक करके सेवा के लिए भागते हो। बापदादा तो मेहनत को भी मुहब्बत के रूप में देखते हैं। मेहनत नहीं कि, मुहब्बत दिखाई। अच्छा! अच्छे उमंग - उत्साह के साथी मिले हैं। विशाल कार्य है और विशाल दिल है, इसलिए जहाँ विशालता है वहाँ सफलता है ही। बापदादा सभी बच्चों के सेवा की लगन को देख रोज खुशी के गीत गाते हैं। कई बार गीत सुनाया है - ‘‘वाह बच्चे वाह!'' अच्छा! आने में कितने राज़ थे, राजों को समझने वाले हो ना! राज़ जाने, बाप जाने। (दादी ने बापदादा को भोग स्वीकार कराना चाहा) आज दृष्टि से ही स्वीकार करेंगे। अच्छा! सबकी बुद्धि बहुत अच्छी चल रही है और एक दो के समीप आ रहे हो ना! इसलिए सफलता अति समीप है। समीपता सफलता को समीप लायेगी। थक तो नहीं गये हो? बहुत काम मिल गया है? लेकिन आधा काम तो बाप करता है। सबका उमंग अच्छा है। दृढ़ता भी है ना! समीपता कितनी समीप है? चुम्बक रख दो तो समीपता सबके गले में माला डाल देगी, ऐसे अनुभव होता है? अच्छा! सब अच्छे - ते - अच्छे हैं।